निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिये-
मृदुल मोम-सा घुल रे मृदु तन!
यहाँ कवयित्री अपने तन-मन को मोम की तरह घुलने या गलाने का आह्वान करती हैं। ऐसा वे प्रभु भक्ति को पाने के लिए आवश्यक मानती हैं। उनका मानना है कि अपने अहंकार को मोम की तरह गला देने पर ही हम ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं। यह अहंकार ईश्वर को प्राप्त करने में हमारा बाधक बनता है। इसिलिए कवयित्री इसे गला देने का प्रभु से आह्वान करती हैं।